नजर आसमां पर जमीं पर पांव हो
धूप सा जज्बा हो पर दिल में छांव हो
टूटते घरों से बढ़ गई मकानों की दरयाफ्त
पर जिंदा रहने के लिए जरूरी है गांव हो
तुम्हारे हाथ हैं तैर कर पार कर लो दरिया
जो बेबस हैं उनके लिए जरूरी है नाव हो
धूप सा जज्बा हो पर दिल में छांव हो
टूटते घरों से बढ़ गई मकानों की दरयाफ्त
पर जिंदा रहने के लिए जरूरी है गांव हो
तुम्हारे हाथ हैं तैर कर पार कर लो दरिया
जो बेबस हैं उनके लिए जरूरी है नाव हो
मैं नहीं जानता कि तुम क्या हो, कभी इंसान तो कभी खुदा हो।
ReplyDeleteमुश्किलों मैं तुम्हें सहारा समझता हूं, फिर कैसे शब्दों में तारीफ बयां हो।।
आपका शुभांगी, दुष्यंत कुमार