घर में खुशहाल था एक आंगन मेरे
कई हुए तो बियाबान सा लगता हैदीवारों पर उभर आईं हैं दरारें बहुत
अब ढही छत दिल हलाकान सा रहता है॥
मेरे घर में खुल गए हैं दरवाजे कई
हर एक पर शक दरबान सा रहता है
जरा सी आहट से चौंक उठता है मन
मुझमें डर जमे मेहमान सा रहता है॥
मेरा घर अब सुनसान सा लगता है
बदलते वक्त में मकान सा लगता है
थाली में कौर बांटता था जो कभी
चूल्हा बटा तो हर शख्स अनजान सा लगता है॥
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