Sunday, November 6, 2011

मासूम बेटी

बेलती थी रोटियां बेटियों के वास्ते
रोटियों केवास्ते बेटियां ही बिक गई
नर्म नर्म लोइयां, छुईमुई सी बेटियां
देहयष्टि खिल गई आंख उन पर गड़ गई।।
जल गई हैवान में देह की भट्टियां
हवस उठ खड़ा हुआ रेंग गई चीटियां
खेत में पड़ी मिली शव बनी बेटियां
मासूम सी जान बनी गोश्त की भट्टियां।।
तमाशबीन देख कर मुंह छुपा चले गए
अखबार में खबर छपी, फिर सभी भूल गए
हैवान से बड़ी हुई समाज की हैवानियत
चुभते सवाल में घिर गई बेटियां।।
सुन सका ना चीख वो न्याय का जो देवता
दिखा नहीं कि आंख पर बंधी रही पट्टियां
खेलता था बचपना आंगन औ चौबारे में
डूब गई किलकारियां रह गई बस सिसकियां।।
कौन है सवाल करे कौन है जवाब दे
हादसे तारीख में तब्दील हो के रह गए
रात फिर चीख उठी दर्द भरी खेत से
हैवान फिर उठा चला मासूम सी बेटियां।।


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