जब मैं दर्द के साज सजाता हूं
तो ही गीत नया गा पाता हूं
अपने तीरों से घायल होता हूं
अपना लहू बहाता हूं, तो ही गीत नया गा पाता हूं..
नाखूनों से खुरची हैं मैंने मन की दीवारें
मौन हुआ हथियार मेरा, ये ही मेरे हत्यारे
चोटिल कदमों को जब बोझिल पा जाता हूं
तो ही गीत नया गा पाता हूं, तो ही गीत नया गा पाता हूं...
सांझ ढले दुबकेसूरज से दो-दो हाथ करूं मैं
मत डूबे, रात न हो, फिर फरियाद करूं मैं
अंधियारी रातों में जब यादों से घिर जाता हूं
तो ही गीत नया गा पाता हूं, तो ही गीत नया गा पाता हूं...
तो ही गीत नया गा पाता हूं
अपने तीरों से घायल होता हूं
अपना लहू बहाता हूं, तो ही गीत नया गा पाता हूं..
नाखूनों से खुरची हैं मैंने मन की दीवारें
मौन हुआ हथियार मेरा, ये ही मेरे हत्यारे
चोटिल कदमों को जब बोझिल पा जाता हूं
तो ही गीत नया गा पाता हूं, तो ही गीत नया गा पाता हूं...
सांझ ढले दुबकेसूरज से दो-दो हाथ करूं मैं
मत डूबे, रात न हो, फिर फरियाद करूं मैं
अंधियारी रातों में जब यादों से घिर जाता हूं
तो ही गीत नया गा पाता हूं, तो ही गीत नया गा पाता हूं...
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