सांझ ढले मेरे अंगना एक चांद उतरता है
मुझसे रुठा रुठा बस यूं ही बातें करता है
गोबर लीपे आंगन में कोने एक चूल्हा है
जो तवे पर रोटी की शक्ल में ढलता है।
इस आंगन में एक हरियाली साल पुरानी है
झिलमिल तारों संग चमके ऐसी एक कहानी है
चूल्हे की आग के संग छिटकी हुई रात चांदनी
धीरे धीरे तवा चांद पर कोई दाग उभरता है।
इक लड़की चांद की ये परिभाषा गढ़ जाती है
दुनियाबी बातें, धीरे धीरे मुझको समझाती है
चांद नहीं रोटी चमके भूखे पेट केआंगन में
रात की छत पे उतरा चांद सबको ही छलता है।
वो लड़की मुझको कुछ और भी याद दिलाती है
कहती थी, भूखे पेट किसी को नींद कहां आती है
रोटी के चंदा से कर दो दो हाथ उबर जाना फिर
तब गढऩा चांद की बातें देखो कितना अच्छा लगता है।
मुझसे रुठा रुठा बस यूं ही बातें करता है
गोबर लीपे आंगन में कोने एक चूल्हा है
जो तवे पर रोटी की शक्ल में ढलता है।
इस आंगन में एक हरियाली साल पुरानी है
झिलमिल तारों संग चमके ऐसी एक कहानी है
चूल्हे की आग के संग छिटकी हुई रात चांदनी
धीरे धीरे तवा चांद पर कोई दाग उभरता है।
इक लड़की चांद की ये परिभाषा गढ़ जाती है
दुनियाबी बातें, धीरे धीरे मुझको समझाती है
चांद नहीं रोटी चमके भूखे पेट केआंगन में
रात की छत पे उतरा चांद सबको ही छलता है।
वो लड़की मुझको कुछ और भी याद दिलाती है
कहती थी, भूखे पेट किसी को नींद कहां आती है
रोटी के चंदा से कर दो दो हाथ उबर जाना फिर
तब गढऩा चांद की बातें देखो कितना अच्छा लगता है।