Saturday, March 26, 2016

बचपन वाली वही लड़ाई....

आओ चलो फिर लड़ते हैं बचपन वाली वही लड़ाई
सिर फुटौव्वल मन मनौव्वल फिर से हम भाई भाई।

पों पों की आवाजों पर जब सरपट दौड़ लगाते थे
तेरी हो या मेरी चवन्नी सब पर हम हक़ जतलाते थे
फिर समझौता हो जाता था मिलके खाते बर्फ मलाई
आओ चले फिर......

चोरी चोरी बागों में हम कैसे मिलकर सेंध लगाते थे
अपनी चोरी तुम पर डाली हम चुपके से छुप जाते थे
अब मन का वो कोना सूना है सूनी है अपनी अमराई
आओ चलो फिर....

अच्छी लगती थी मुझको बस कवर चढ़ी तेरी किताबें
पेन तुम्हारा ही अच्छा है कई दफे उसे हम ले भागे
लगती थी डांट बुरी तुम्हारी पर अच्छी थी वही पढ़ाई
आओ चलो फिर....

बड़े हुए हम सब तो वो सब कुछ सपना लगता है
तारीखें बदलीं हम बदले सब कुछ बदला लगता है
बदले कैलेंडर बदली घड़ियां ये वक़्त कौन सा ले आईं
आओ चलो फिर ...

तेरा मेरा करते अब हम भूल चुके हैं बचपन को
आँगन में खड़ी दीवारों सा बाँट चुके हैं अपने मन को
ऐसे सवालों में उलझे हैं अब क्यों ना तेरे हिस्से माँ आई
आओ चलो फिर.... 

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