Saturday, March 26, 2016

सखी आयो रे फागुन बावरो

सखी आयो रे फागुन बावरो मोरे पिया अबहूँ नहीं आये
सखी जानो रे साजन सांवरो मोरे हिया अगन लगाए
सखी आयो रे....

पीली पीली सरसों लहकी चटख रंग है छाया
महकी महकी अमराई है आम भी है बौराया
फागुन की कोयल भी कूके मोरे पिया सुनहुँ नहीं आये
सखी आयो रे....

जानूँ न काहे सांवरा बन बैरन जिया जलाए
सावन बीतो ऐसहीं मोरा मन भी भीगा जाये
मेघ बन अंखियां भी बरसीं मोरे पिया तबहूं नहीं आए
सखी आयो रे...

चिट्ठी पाती संदेशा भर कागद बहुत भिजायो री
कजरारी भाषा पढ़ लें सो काजर भी ढरकायो री
ह्रदय अंदेशा भर भर धड़के काहे  संदेशा नहीं भिजवाये
सखी आयो रे....

बृजेश...

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