Saturday, March 26, 2016

हाशिये पर आदमी

हाशिये पर आदमी इस पे हम क्या कहें
बात कोरी कागजी इस पे हम क्या कहें
अदम के गांव में अब भी उड़ रही धूल है
तब भी मौसम गुलाबी इस पे हम क्या कहें
कल्लू की गली में आज भी अँधेरा है
हाकिम हैं दुनियाबी इस पे हम क्या कहें
महफ़िल है शबाब है शराब है कबाब है
जुम्मन की फूटी रकाबी इस पे हम क्या कहें
तुमने तो आँख में बस काजल देखा है
गीले नयन गुलाबी इस पे हम क्या कहें
चुगली कर रही लकीर काली सी गाल पर
आँखें रहीं रुआंसी इस पे हम क्या कहें

बचपन वाली वही लड़ाई....

आओ चलो फिर लड़ते हैं बचपन वाली वही लड़ाई
सिर फुटौव्वल मन मनौव्वल फिर से हम भाई भाई।

पों पों की आवाजों पर जब सरपट दौड़ लगाते थे
तेरी हो या मेरी चवन्नी सब पर हम हक़ जतलाते थे
फिर समझौता हो जाता था मिलके खाते बर्फ मलाई
आओ चले फिर......

चोरी चोरी बागों में हम कैसे मिलकर सेंध लगाते थे
अपनी चोरी तुम पर डाली हम चुपके से छुप जाते थे
अब मन का वो कोना सूना है सूनी है अपनी अमराई
आओ चलो फिर....

अच्छी लगती थी मुझको बस कवर चढ़ी तेरी किताबें
पेन तुम्हारा ही अच्छा है कई दफे उसे हम ले भागे
लगती थी डांट बुरी तुम्हारी पर अच्छी थी वही पढ़ाई
आओ चलो फिर....

बड़े हुए हम सब तो वो सब कुछ सपना लगता है
तारीखें बदलीं हम बदले सब कुछ बदला लगता है
बदले कैलेंडर बदली घड़ियां ये वक़्त कौन सा ले आईं
आओ चलो फिर ...

तेरा मेरा करते अब हम भूल चुके हैं बचपन को
आँगन में खड़ी दीवारों सा बाँट चुके हैं अपने मन को
ऐसे सवालों में उलझे हैं अब क्यों ना तेरे हिस्से माँ आई
आओ चलो फिर.... 

इंसान भी बिकता है

दुकान पर हो बिकोगे एक दिन जरूर
किसने कहा बस सामान ही बिकता है
यह तो हुनर पर है कि मोल क्या लगा
कीमत अच्छी हो, इंसान भी बिकता है

चिता का साजो सामान है तो क्या
वह दुकानदार है अपना मुनाफा कमाएगा
हकीकत पर सर्मिन्दा होने कि जरूरत नहीं
bajar me jhoot का syapa भी mil jayega.

सखी आयो रे फागुन बावरो

सखी आयो रे फागुन बावरो मोरे पिया अबहूँ नहीं आये
सखी जानो रे साजन सांवरो मोरे हिया अगन लगाए
सखी आयो रे....

पीली पीली सरसों लहकी चटख रंग है छाया
महकी महकी अमराई है आम भी है बौराया
फागुन की कोयल भी कूके मोरे पिया सुनहुँ नहीं आये
सखी आयो रे....

जानूँ न काहे सांवरा बन बैरन जिया जलाए
सावन बीतो ऐसहीं मोरा मन भी भीगा जाये
मेघ बन अंखियां भी बरसीं मोरे पिया तबहूं नहीं आए
सखी आयो रे...

चिट्ठी पाती संदेशा भर कागद बहुत भिजायो री
कजरारी भाषा पढ़ लें सो काजर भी ढरकायो री
ह्रदय अंदेशा भर भर धड़के काहे  संदेशा नहीं भिजवाये
सखी आयो रे....

बृजेश...

तुम बात तुम्हारी कहते तो

नयन मेरे पढ़कर तुम बात तुम्हारी कहते तो
गुनते बुनते रचते बसते हम बात तुम्हारी सुनते तो

क्यों सावन की राह चलो न अच्छी न बात भली
मेरे नयन बरसते हैं जब खुद को कहती दुःख की बदली
दुःख की नदिया छोटी हो जाती इसके पार उतरते तो

सांसों में घुलकर मेरी तुम सांस तुम्हारी बहने देते
दग्ध ह्रदय शीतल होता तुम आँख तुम्हारी बहने देते
धड़कन धड़कन को पढ़ लेती तुम धड़कन से लिखते तो