Thursday, March 29, 2012

एक और चेहरा

एक चेहरे के पीछे एक और चेहरा है
हर्फ बहुत भारी है, बहुत गहरा है
स्याह अंधेरा बहुत छिपाए बैठा है
जो कहता है कल बहुत सुनहरा है
हर आंख में लहू, हाथ में खंजर हैं
खुदा जाने दिल में कितना अंधेरा है
सूरज की किरणें महलो में छुपी हैं
कोई बताएगा ये कौन सा सबेरा है
हर दीवार केपीछे परछाईं रहती है
आज हमारा किस मकां में बसेरा है

शक बहुत है

के आदमी इंसान हो, इसमें शक बहुत है
दरअसल फर्ज कम हैं, हक बहुत है
बेचा जमीर तो ख्याल ये दब सा गया
जन्नतें कम हैं वहां दोजख बहुत है
इक सवाल है मेरा, कि तुझे कमी क्या है
तू कहता कम है वो, जो बेशक बहुत है।
जरा गौर से देख खुद को ईमान के आइने में
जो तू है, जो कल था, उसमें फरक बहुत है
शहंशाहों से सौदे बस फकीर किया करते हैं
उनमें खुदा सी शहंशाही का असर बहुत है

Thursday, March 8, 2012

नजाकत हाशिया और गुमाश्ते

कौन है उनकी बात करे जो हाशिये पर हैं
जिनके कत्लेआम की चर्चा बस वाकये पर है
दिल्ली की हुकूमत पर हमे भरोसा हो कैसे
सत्ता की चाभी जहां एक दो भाषिये पर है

सूरज की तपिश महलों में उतर ठंडी हो रही
तपती सड़क, नंगे पांव यहां हर रास्ते पर हैं
पेट की भूख से ज्यादा कभी सोचा नहीं गया
यूं कसमसाते हाथ पेट के गुमाश्ते भर है

जबां पर यूं ही हमने तालाबंदी की नहीं
तल्ख लफ्जों के मकाले को इजाजत हैं कहां
कीमती पत्थरों से मढ़कर पत्थर से ही हुए
किसी का दर्द छू लें, वह नजाकत है कहां

 

Saturday, February 11, 2012

मन बच्चे सा क्यों ना है.....

मन बच्चे सा क्यों ना है.....
मन बच्चे सा क्यो ना है, जो रुठे तो फिर माने भी
चिडिय़ोंं की भाषा समझे, तितली उसको पहचाने भी।
मन बच्चे सा क्यों ना है....
जीने की दुश्वारी में एक पल भी बच्चा ना रह पाया
कच्ची उम्र में जीते एक पल भी कच्चा ना रह पाया
कच्चा बच्चा पक्का अच्छा, बचपन से ही जाने भी।
मन बच्चे सा क्यों ना है....
संगी साथी खेल खिलौने बीते दिन की बातें होंगी
सुनी कभी जो लंबी कहानी और छोटी रातें होंगी
बचपन जो जी ना पाया, कहां कहानी वो जाने भी।
मन बच्चे सा क्यों ना है.....
शाम ढले घर आया हूं, हाथों को लेकर फिर खाली
बच्चे के गालों पर पहले थपकी फिर दी झूठी ताली
मैं समझूं बच्चा बहल गया पर वह सबकुछ जाने भी।
मन बच्चे सा क्यों ना है.....

Saturday, January 28, 2012

भविष्य

खेलने की उम्र में जो पत्थर तोड़ते दिख रहे हैं
सियासतदां इन्हें ही भविष्य देश का कह रहे हैं
कंधों पर बस्ते की जगह बेलदारी केबोझ लदे हैं
देश केभविष्य हैं और ढाबों में बर्तन धो रहे हैं

किरदार

तुमने कह तो दिया मैं हर रोज किरदार बदलता हूं
चलो सच बोलता हूं, मैं कुछ भी नहीं छिपाऊंगा
मैं आइना हूं, अपनी फितरत कैसे बदल दूं भला
तुम किरदार जैसे हो मैं वैसा ही नजर आऊंगा।

Thursday, January 12, 2012

मैं आईना हूं

 मैं आईना हूं, बेबाक हो कर सामने आ जाना
शफ्फाक हो तुम अगर, मैं बेदाग नजर आऊंगा
किरदारों से मत हो जाना कहीं तुम पर्दानशीं
तफ्सील से पढ़ लेना खुली किताब नजर आऊंगा
हर्र्फों के मायने बिला शक ईमान से बयां करना
खुदगर्जी से मत पढऩा मुझे वरना बदल जाऊंगा
गुजारिश यह भी है सियासतों से दूर रखना मुझे
सच का सिला पत्थर होगा और बिखर जाऊंगा॥

Saturday, January 7, 2012

सियासत का जख्म

कड़वाहट खूब देते हैं, यह आदत किसकी है
हिस्सों में बांट देते हैं, यह सियासत किसकी है
हिस्सों के जख्म पर मरहम भी देख के लगते हैं
सुखन महसूस करते हैं, यह नफासत किसकी है....