Thursday, March 8, 2012

नजाकत हाशिया और गुमाश्ते

कौन है उनकी बात करे जो हाशिये पर हैं
जिनके कत्लेआम की चर्चा बस वाकये पर है
दिल्ली की हुकूमत पर हमे भरोसा हो कैसे
सत्ता की चाभी जहां एक दो भाषिये पर है

सूरज की तपिश महलों में उतर ठंडी हो रही
तपती सड़क, नंगे पांव यहां हर रास्ते पर हैं
पेट की भूख से ज्यादा कभी सोचा नहीं गया
यूं कसमसाते हाथ पेट के गुमाश्ते भर है

जबां पर यूं ही हमने तालाबंदी की नहीं
तल्ख लफ्जों के मकाले को इजाजत हैं कहां
कीमती पत्थरों से मढ़कर पत्थर से ही हुए
किसी का दर्द छू लें, वह नजाकत है कहां

 

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