Thursday, March 29, 2012

शक बहुत है

के आदमी इंसान हो, इसमें शक बहुत है
दरअसल फर्ज कम हैं, हक बहुत है
बेचा जमीर तो ख्याल ये दब सा गया
जन्नतें कम हैं वहां दोजख बहुत है
इक सवाल है मेरा, कि तुझे कमी क्या है
तू कहता कम है वो, जो बेशक बहुत है।
जरा गौर से देख खुद को ईमान के आइने में
जो तू है, जो कल था, उसमें फरक बहुत है
शहंशाहों से सौदे बस फकीर किया करते हैं
उनमें खुदा सी शहंशाही का असर बहुत है

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