Saturday, February 11, 2012

मन बच्चे सा क्यों ना है.....

मन बच्चे सा क्यों ना है.....
मन बच्चे सा क्यो ना है, जो रुठे तो फिर माने भी
चिडिय़ोंं की भाषा समझे, तितली उसको पहचाने भी।
मन बच्चे सा क्यों ना है....
जीने की दुश्वारी में एक पल भी बच्चा ना रह पाया
कच्ची उम्र में जीते एक पल भी कच्चा ना रह पाया
कच्चा बच्चा पक्का अच्छा, बचपन से ही जाने भी।
मन बच्चे सा क्यों ना है....
संगी साथी खेल खिलौने बीते दिन की बातें होंगी
सुनी कभी जो लंबी कहानी और छोटी रातें होंगी
बचपन जो जी ना पाया, कहां कहानी वो जाने भी।
मन बच्चे सा क्यों ना है.....
शाम ढले घर आया हूं, हाथों को लेकर फिर खाली
बच्चे के गालों पर पहले थपकी फिर दी झूठी ताली
मैं समझूं बच्चा बहल गया पर वह सबकुछ जाने भी।
मन बच्चे सा क्यों ना है.....

1 comment:

  1. मन के कोने के बच्चे को कहां ले जाएं, उसका साथी नहीं मिलता तो गुमसुम रहता है , साथी मिलता है तो लड़ता है, पर कहीं ना कहीं यह बच्चा जी तो रहा होगा

    ReplyDelete