Saturday, December 3, 2011

सियासत का चेहरा

सियासत का ये कौन सा चेहरा है
बागबां था अब तलक आज वो लुटेरा है
रोशन हैं महलों दुमहलों के परकोटे
कल्लू की गली में आज भी अंधेरा है।

जश्न-ओ-जाम में रंगीन हुई शाम है
सफेद लिबास में नंगई खुले आम है
चुपचाप सो गए दिन के स्याह चूल्हे
कल्लू के घर में फांके सुबहो शाम है
खुशी के रंग कैद कर हाथ बांधे बैठा है
आज बेईमान हुआ कौन ये चितेरा है।

बेफिक्र सा हुस्न ले साकिया छेड़ रही
लाल परी होंठ से होंठ ले खेल रही
खून के रंग, बू कौन यहां देख रहा
भुने हुए गोश्त की महक बड़ी तेज रही
सौदा हलाल का कल्लू रहा खाली हाथ
मंत्री आवास या बेईमानों का बसेरा है।

विलायती बिस्कुटों पर कुत्ते फिर लड़ गए
मालिकों के सामने हक पर अपने अड़ गए
काट काट नोंच खा लहूलुहान हो गए
बची हुई हड्डियों को चूस कर सो गए
कल्लू ये पूछ रहा कौन सा ये लोकतंत्र
कैसे ये रात ढली कौन सा सबेरा है।

रोशन हैं महलों दुमहलों के परकोटे
कल्लू की गली में आज भी अंधेरा है।

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