Monday, December 26, 2011

घर के आले पर जुगनू

सूरज खोजे नया बसेरा, जुगनू घर के आले पर है
रोटी देने की ड्यूटी थी जिनकी नजर निवाले पर है
फिर से अब वो झुका रहे सर, घूम रहे हर घर पर
कुर्सी की चाहत छलके, नजरें सत्ता केप्याले पर हैं॥
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हर पांच साल पर जनता जमान की जय हो
मंदी में डूबा देश सेंसेक्स के उड़ान की जय हो
साहब महंगाई दर धीरे धीरे पहुंच रही जीरो पर
सिफर महंगाई में भी जेब के कटान की जय हो॥
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नीला खेमा, केसरिया बाना, रंग तिरंगा सजा हुआ
सत्ता संग्राम में शेर भी उतरे कहीं सियार रंगा हुआ
कुछ हाथों में तलवार दुधारी, कुछ जीभें बनी कटारी
संभलो, फिर न शिकायत करना, अब भी दगा हुआ॥
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कृपया किसी को न बहकाए
अपनी आदतों से बाज आएं
क्षेत्र-जाति वाद न सिखाएं
विकास के बूते लडऩे आएं
जन बल धीरे से जग रहा है
आयोग भी पेंच कस रहा है॥

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