Monday, January 17, 2011

दुकान

दुकान पर हो बिकोगे एक दिन जरूर
किसने कहा बस सामान ही बिकता है
यह तो हुनर पर है कि मोल क्या लगा
कीमत अच्छी हो, इंसान भी बिकता है

चिता का साजो सामान है तो क्या
वह दुकानदार है अपना मुनाफा कमाएगा
हकीकत पर शर्मिंदा होने कि जरूरत नहीं
बाजार में झूठ का स्यापा भी मिल जायेगा.



बृजेश कुमार दुबे

Thursday, January 13, 2011

रोशनी के लिए

डाल दो मुझको मिटटी के दिए में
उम्र भर जलता रहूँगा.
दूंगा प्रकाश सुरभित सुंगधित मैं
गहन तिमिर हरता रहूँगा.
वेदना न होगी मुझे
यूं उम्र भर जलने की
प्रकाश के हेतुक स्वयं
अखंड ज्योति बन जलता रहूँगा.
या यज्ञ में तुम होम कर दो मुझे
आहुति की समिधा बनाकर
यज्ञ पूर्ण हो बलिदान का
पूर्णाहुति बन जलता रहूँगा.
या कर दो चिर समाधि में लीन मुझको
अनंत का एक कण बनाकर
पर गहन तिमिर हरने के हेतुक
पुनश्च प्रकाश बन जलता रहूँगा.

Tuesday, January 11, 2011

"नींव का पत्थर"

" जो जमीन में धंसा हुआ, वो नींव का पत्थर है,
इस पर दीवार खड़ी होती है तभी छत की बात करते हैं"

Monday, January 10, 2011

"फुहार"

जब आशंकाओं के बादल उमड़ घुमड़ रहे थे मन में
कुछ आशाएं कुछ संदेहों की सिरहन थी तन मन में
तब तक इक महीन सी रेखा खिंच गयी क्रंदन की
इक कोंपल फूटी छुईमुई सी सपनीले जीवन की
संदेहों के बादल छंट  रहे थे धीरे धीरे हौले हौले
मन दौड़ रहा था कब कैसे उस क्रंदन रेखा को छू लें
सृष्टि का था बोध यही हम, हम से वो
फिर मन ने धीरे से गाया जीवन का संगीत था जो.

फुहार के होने पर....
२७ जुलाई को....