देखो तुम्हारे प्रेम की मद्धम आंच में
कैसे मैं पिघल रहा हूँ कतरा कतरा
मोम की तरह
लेकिन जरा धोखा भी है
इस चूल्हे से उतरते ही मैं
फिर समेट लेता हूँ अपना वजूद
ठंडी होते ही ये आंच
मैं फिर बन जाता हूँ मोम
लेकिन ठोस
कैसे मैं पिघल रहा हूँ कतरा कतरा
मोम की तरह
लेकिन जरा धोखा भी है
इस चूल्हे से उतरते ही मैं
फिर समेट लेता हूँ अपना वजूद
ठंडी होते ही ये आंच
मैं फिर बन जाता हूँ मोम
लेकिन ठोस
Moom magar thos ....
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