Sunday, May 1, 2016

दिल पत्थर

अब दिल से पत्थर का काम लेते हैं
दर्द होता है फिर भी तेरा नाम लेते हैं
मयकदा जानता है नशे की सच्चाई
हमप्याले मुझे जाम पर जाम देते हैं
तेरी महफ़िल से उठने की जुर्रत कहाँ
तेरा तीर-ए-नज़र दिल से थाम लेते हैं
रहगुज़र की बात क्या बताऊँ भला
मिरे क़दमों से चलने का काम लेते हैं
इमान जानता है के हमने क्या कहा
ज़माने के कहे पर मिरा नाम लेते हैं
खुश्क सी जिंदगी है तेरे जाने के बाद
बहारेयाद के लिए अश्कों से काम लेते हैं
बृजेश...

पहली लाइन बाजीराव मस्तानी फ़िल्म का संवाद है।

हर शख्स का किरदार है

संशोधित

कोई है खबरनवीस कोई नगमा निगार है
कुछ है जो सियासत इनकी तलबगार है
इनकी कलम सियासी हाथों ने थाम रखी
आइने के पीछे हर शख्स का किरदार है
सच कहाँ आ रहा अब खबरनवीसी में
कोई झंडाबरदार है तो कोई तरफदार है
कोई राम को थामे कोई काबा लिए बैठा
हो रहा सर्वे यहाँ कितना कौन असरदार है
बिलबिलाता फिर दिखेगा भूख से बच्चा वही
ये चुनावी साल है वो चुनावी इश्तिहार है
रोशनाई काली और हर्फ़ लिखे बस सुनहरे
विज्ञापनों के बोझ तले आज का अख़बार है
भूख भय भ्रष्टाचार इनसे हम लड़ जायेंगे
कलम लिखे जंग जुबानी धर्म ही हथियार है
हाल कहाँ बदला जनाब लोग ही बदल गए
चेहरा चरित्तर एक सा सब एक सी सरकार है
बृजेश....

लड़कियां गाएंगी गीत नया

आज हृदय में फिर आग का स्वर है
कई दिनों बाद गीत फिर कोई मुखर है
ख़त्म कहाँ हुआ आदम होने का गरूर
हव्वा पर जारी आज भी उसका कहर है
जाने किन खिड़कियों से आएगी रोशनी
बंद हैं उसके दरवाजे बंद सारा घर है
याद रखना के अँधेरा जब भी घना होगा
ये भी याद रखना रात का अंतिम पहर है

तुम्हारे लिए बस इक तादाद हैं ये लड़कियां
बड़े कमजर्फ सा इक एहसास हैं ये लड़कियां
रोशनी मांग ली गर तो बड़ी गुनहगार हो गईं
बोलते हो बेहया बदहवास हैं ये लड़कियां
तुम्हारी सोच के हर हथौड़े की चोट उनपर
याद रखना तुम्हारी सृष्टि पर तुम्हारा कहर है

फिर आग के स्वर ले जब वो गाएंगी गीत नया
शब्द बाण सब जल उठेंगे वो लेंगी जीत जहाँ
भले छिपाकर रखो तुम उनको बंद अंधेरे कमरे में
सूरज तब तो झांकेगा जब जर्जर होगी दीवार वहां
सोचो घुटन भरे अहसासों से तुम कैसे मुक्ति पाओगे
रखना याद तुम्हारे पास तब केवल जर्जर सा घर है

आसमां तक जाएँगी ये भी होगा इक दिन
कैद तूफां कर लाएंगी ये भी होगा इक दिन
अपनी ताकत  रख लेना अपने ही तक तुम 
हौसला हथियार उनका ये भी होगा इक दिन
तुमने आँगन के पिंजरे में उनको रखना चाहा है
मत भूलना हिम्मत का उनकी पीठों पे अब पर है
बृजेश.....