Tuesday, May 10, 2011

जिबह ज़मीर की सरगोशियाँ

लहू की सरगोशियाँ कान तक पहुंची आँख में खून उतर आया
चलो अच्छा है, मालूम तो चला शैतान अभी जिन्दा है
पर ये पूरा सच नहीं है, उसमे कुछ इंसां सा बाकी है
सुना है वो अपनी गलती पर बेहद शर्मिंदा है,
दरअसल हर रोज़ जिबह होता है ज़मीर ज़रुरत के हक़ में
वो दिल से बहूत दूर है, बस पापी पेट का कारिन्दा है,
वो कैसे गायेगा इंसानियत के साज़, होगा इंसां सा-जिंदा 
दरअसल वो आज भी मुर्दों के शहर का बाशिंदा है.google